कांग्रेस का अंत : कांग्रेस का प्रारंभ
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देश में दो स्तरों पर राजनीतिक प्रयोग शुरू होगा-एक तरफ एनडीए का नया सबल स्वरूप खड़ा होगा, तो दूसरी तरफ यूपीए का नया जमावडा खड़ा होगा। इसमें से वह राजनीतिक विमर्श खड़ा होगा जो भारतीय लोकतंत्र को आगे ले जाएगा।
कुमार प्रशांत; 04.06.2019
एक राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस का यह अंत है। यह बिल्कुल सच है कि महात्मा गांधी ने 29 जनवरी 1948 की देर रात देश के लिए जो अंतिम दस्तावेज लिख कर समाप्त किया था, उसमें एक राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को खत्म करने की सलाह दी गयी थी। उन्होंने लिखा था कि कांग्रेस के मलबे में से वे ‘लोक सेवक संघ’ नाम का एक ऐसा नया संगठन खड़ा करेंगे जो चुनावी राजनीति से अलग रह कर, चुनावी राजनीति पर अंकुश रखेगा। उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस के जो सदस्य चुनावी राजनीति में रहना चाहते हैं उन्हें नया राजनीतिक दल बनाना चाहिए, ताकि स्वतंत्र भारत में संसदीय राजनीति के सारे खिलाड़ी एक ही ‘प्रारंभ-रेखा’ से अपनी दौड़ शुरू कर सकें।
कांग्रेस के दो मायने
गांधीजी के लिए कांग्रेस के दो मायने थे: एक उसका संगठन और दूसरा उसका दर्शन। वे कांग्रेस का संगठन समाप्त करना चाहते थे, ताकि आजादी की लड़ाई की ऐतिहासिक विरासत का बेजा हक दिखा कर, कांग्रेसी दूसरे दलों से आगे न निकल जाएं। यह उस नवजात संसदीय लोकतंत्र के प्रति उनका दायित्व-निर्वाह था जिसे वे कभी पसंद नहीं करते थे और जिसके अमंगलकारी होने के बारे में उन्हें कोई भ्रम नहीं था। उन्होंने इस संसदीय लोकतंत्र को ‘बांझ व वैश्या’ जैसा कुरूप विशेषण दिया था, लेकिन वे जानते थे कि इस अमंगलकारी व्यवस्था से उनके देश को भी गुजरना तो होगा, सो उन्होंने उसका रास्ता इस तरह निकाला था। एक राजनीतिक दर्शन के रूप में वे कांग्रेस की समाप्ति कभी भी नहीं चाहते थे और इसलिए चाहते थे कि वैसे लोग अपना नया राजनीतिक दल बना लें।
गांधी के साथ जब तक कांग्रेस थी, वह एक आंदोलन थी -आजादी की लड़ाई का आंदोलन, भारतीय मन व समाज को आलोड़ित कर नया बनाने का आंदोलन। जवाहरलाल नेहरू के हाथ में आकर कांग्रेस सत्ता की ताकत से देश के निर्माण का संगठन बन गयी। वह बौनी भी हो गयी और सीमित भी, और फिर चुनावी मशीन में बदल कर रह गयी। अब तक दूसरी कंपनियों की चुनावी मशीनें भी राजनीति के बाजार में आ गयी थीं, सो सभी अपनी-अपनी लड़ाई में लग गयी। कांग्रेस की मशीन सबसे पुरानी थी, इसलिए यह सबसे पहले टूटी, सबसे अधिक परेशानी पैदा करने लगी। अपनी मां की कांग्रेस को बेटे राजीव गांधी ने ‘सत्ता के दलालों’ के बीच फंसा पाया था, तो उनके बेटे राहुल गांधी ने इसे हताश, हतप्रभ और जर्जर अवस्था में पाया। कांग्रेस नेहरू-परिवार से बाहर निकल पाती तो इसे नये ‘डॉक्टर’ मिल सकते थे, लेकिन पुराने ‘डॉक्टरों’ को इसमें खतरा लगा और इसकी किस्मत नेहरू-परिवार से जोड़ कर ही रखी गयी। राज-परिवारों में ऐसा संकट होता ही है, कांग्रेस में भी हुआ। अब ‘डॉक्टर’ राहुल गांधी कांग्रेस के इलाज में लगे हैं। यह नौजवान पढ़ाई के बाद ‘डॉक्टर’ नहीं बना है, ‘डॉक्टर’ बन कर पढ़ाई कर रहा है। इसकी विशेषता इसकी मेहनत और इसका आत्मविश्वास है। मरीज अगर संभलेगा तो इसी डॉक्टर से संभलेगा।
कांग्रेस क्यों विफल रही
ताजा चुनाव में कांग्रेस दो कारणों से विफल रही: एक, वह विपक्ष की नहीं, पार्टी की आवाज बन कर रह गयी। दो, वह कांग्रेस नहीं, नकली भाजपा बनने में लग गयी। जब असली मौजूद है तब लोग नकली माल क्यों लें ? कांग्रेस का संगठन तो पहले ही बिखरा हुआ था, नकल से उसका आत्मविश्वास भी जाता रहा। मोदी-विरोधी विपक्ष को कांग्रेस में अपनी प्रतिध्वनि नहीं मिली, देश को उसमें नयी दिशा का आत्मविश्वास नहीं मिला। राहुल गांधी ने छलांग तो बहुत लंबी लगाई, लेकिन वे कहां पहुंचना चाहते थे, यह उन्हें ही पता नहीं चला।
अब राहुल-प्रियंका की कांग्रेस को ऐसी रणनीति बनानी होगी कि कांग्रेस विपक्षी एका की धुरी बन सके और 2024 तक वह सशक्त राजनीतिक विपक्ष की तरह लोगों को वास्तव में दिखायी देने लगे। ऐसा नया राजनीतिक विमर्श वर्तमान की जरूरत भी और मजबूरी भी है। वर्ष 2019 से देश में दो स्तरों पर राजनीतिक प्रयोग शुरू होगा-एक तरफ एनडीए का नया सबल स्वरूप खड़ा होगा, तो दूसरी तरफ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का नया जमावडा खड़ा होगा। इसमें से वह राजनीतिक विमर्श खड़ा होगा जो भारतीय लोकतंत्र को आगे ले जाएगा। इससे हमारा लोकतंत्र स्वस्थ भी बनेगा और मजबूत भी।