आतंकियों को पेंशन देने और जन्नत के हसीन सपने दिखाने वाला देश, जहां आतंकियों की भर्ती व ट्रेनिंग के लिए पर्चे बांटे जाते हैं
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“पाकिस्तान में आतंकवाद की फैक्टरियां होने की जानकारी सारी दुनिया को है। लेकिन यह पहला मौका है जब पाकिस्तान के एक मंत्री ने ताव में आकर नेशनल असेंबली में यह उगल दिया कि पुलवामा में आतंकी हमला पाकिस्तान ने ही कराया था। बड़बोले मंत्री फवाद चौधरी ने बड़ी बेशर्मी और फख्र के साथ यह भी कहा कि ‘हमने हिंदुस्तान को उसके घर में घुसकर मारा।’ इसके साथ ही यह भी कहा कि ‘पुलवामा में हमारी कामयाबी इमरान खान की रहनुमाई में सारी कौम की कामयाबी है।’ इस कबूलनामे और पाकिस्तान की आतंकी हरकतों के बारे में पहले से प्राप्त ढेर सारे पुष्ट सबूतों के बाद पाकिस्तान को एक आतंकी देश घोषित करने में कौन-सी कसर बाकी रह जाती है?”
“यूएन द्वारा घोषित कई अंतरराष्ट्रीय आतंकी पाकिस्तान में खुले आम घूम रहे हैं और मौज उड़ा रहे हैं। पाकिस्तान ने अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को इसलामाबाद के निकट अपने छावनी नगर एबटाबाद में छिपाकर रखा हुआ था। यूएन में भारतीय प्रतिनिधि विदिशा मैत्रा ने पाकिस्तान के बारे में बेबाक टिप्पणी करते हुए कह दिया कि जो देश आतंकियों को पेंशन देता है उसे यह कहने का कोई अधिकार नहीं कि वह स्वयं आतंकवाद से पीड़ित है और आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहा है।”
बलबीर दत्त
सारी दुनिया जानती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा आतंकी पाकिस्तान में पाये जाते हैं। वहां आतंकवाद की ट्रेनिंग देने वाली फैक्टरियां खुली हुई हैं। ये फैक्टरियां तीन अलग-अलग सेक्टरों में संचालित हैं। पब्लिक सेक्टर, प्राइवेट सेक्टर और जाइंट सेक्टर।
सरकारी, अर्ध सरकारी व प्राइवेट सेक्टर के ट्रेनिंग सेंटर
पब्लिक सेक्टर यानी सरकारी सेक्टर के ट्रेनिंग सेंटर वे हैं जिन्हें पाकिस्तान या उसकी फौज के तहत बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई सीधे खुद चलाती है। जाइंट सेक्टर के ट्रेनिंग सेंटर वे हैं जिन्हें पाकिस्तानी फौज और आतंकी सरगना मिलकर चलाते हैं। प्राइवेट सेक्टर के ट्रेनिंग सेंटर अलग-अलग वर्ग के हैं। कुछ को तो पाकिस्तान सरकार यानी उसकी फौज ‘आउटसोर्सिंग’ पद्धति से सहयोग प्रदान करती है।
कई ऐसे ट्रेनिंग सेंटर हैं जो आत्मनिर्भर या ‘खुदमुख्तार’ हैं, विभिन्न स्रोतों से मदद जुगाड़ करते हैं। इनमें कई चुनिंदा ट्रेनिंग सेंटर ऐसे भी हैं जिन पर पाकिस्तान सरकार की नजरे इनायत रहती है। लेकिन अब चंद ऐसे ट्रेनिंग सेंटर भी बन गये हैं जो पाकिस्तान के लिए भस्मासुर सिद्ध हो रहे हैं, हालांकि इन्हें कभी पाकिस्तान सरकार ने ही पालना-पोसना शुरू किया था।
इसी प्रसंग में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘पाकिस्तान अपने पिछवाड़े में सांप पाल रहा है। पाकिस्तानी फौज सपेरे की तरह इन सांपों को नचाती है और इन्हें दूध पिलाती है। लेकिन पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के लिए इनमें से कुछ सांप परेशानी की वजह बन चुके हैं। वे दुश्मन भारत को काटने के बदले पाकिस्तानी फौज और सरकार को ही डंसने लगे हैं।’ दिसंबर 2014 में पेशावर में ऐसे ही एक गुट तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने आर्मी स्कूल पर हमला कर 132 बच्चों समेत 41 लोगों को गोलियों से भून दिया था।
इस दहला देने वाली घटना पर पाकिस्तान में बड़ा कोहराम मचा था। आतंकवाद के विरुद्ध मुहिम चलाने और ‘अच्छे आतंकी’ और ‘बुरे आतंकी’ का भेद खत्म करने की मांग ने जोर पकड़ा था। लेकिन पाकिस्तान ने पेशावर कांड से कोई सबक नहीं सीखा। पेशावर कांड से पहले और उसके बाद भी आतंकी सांपों ने पाकिस्तान को डंसा, यहां तक कि पाकिस्तानी फौज के सदर मुकाम, पुलिस लाइन्स, जलसेना और वायुसेना के ठिकानों पर भी निशाना साधा था।
इसके बावजूद पाकिस्तान में आतंकियों को ट्रेनिंग देने वाली फैक्टरियां चालू रहीं। ये फैक्टरियां शायद कभी बंद नहीं होंगी, क्योंकि भारत के साथ आमने-सामने की लड़ाई में बार-बार शिकस्त खाने वाली पाकिस्तानी फौज ने, जो सरकार का भी संचालन करती है, भारत के विरुद्ध आतंकी जिहाद को अपनी विदेश नीति का मूलसिद्धांत बना लिया है। यह मियां भुट्टो और ‘मुल्ला जनरल’ जिया-उल-हक की भारत को 1000 जख्मों से लहू-लुहान करने की योजना का अनुसरण है।
इसी योजना के अनुसरण में ही पाकिस्तान ने पिछले वर्ष कश्मीर में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले की साजिश रची थी। एक फिदायीन आतंकी ने 350 किलो विस्फोटकों से भरी एसयूवी को जवानों की बस से टकरा दिया था जिससे 44 जवान शहीद हो गये थे। भारतीय अन्वेषण एजेंसी एनआईए ने पुलवामा हमले की योजना बनाने और हमलावर को ट्रेनिंग देने के पीछे इसलामाबाद का हाथ बताया था।
एजेंसी ने चार्जशीट में कहा था पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के ट्रेनिंग-प्राप्त आतंकियों को भारत भेजा था। एजेंसी के सूत्रों ने बताया था कि मजबूत तकनीक तंत्र, दस्तावेजों और भौतिक साक्ष्य विशेषज्ञों की रिपोर्टों के अलावा विदेशी एजेंसी से साझा किये गये सबूतों से साफ पता चलता है कि इस हमले में सीधे तौर पर पाकिस्तान सरकार शामिल थी।
पूर्व पाकिस्तानी राजदूत ने खोली कलई
पुलवामा में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही किरकिरी के बीच अमेरिका में पाकिस्तान के एक पूर्व राजदूत एवं जाने-माने लेखक हुसैन हक्कानी ने ‘वाशिंगटन पोस्ट’ (Washington Post) में लिखा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की फैक्टरी को समर्थन देने की पाकिस्तान की तीन दशक पुरानी रणनीति असफल हो गयी है। हक्कानी ने लिखा- ‘कुछ पाकिस्तानियों को निगलने में यह कड़वा लग सकता है, लेकिन यह सच है कि जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी मुसलमानों को समर्थन देने का दावा करने वाले पाकिस्तान की नीति ने कश्मीरी मुसलमानों की जिंदगी को और कठिन कर दिया है।’
पुलवामा हमले के बाद जैश-ए-मुहम्मद ने खुद भी कबूल किया था कि इस हमले में उसका हाथ था। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने, जिन्हें पाकिस्तान में अनेक लोग ‘तालिबान खान’ कहते हैं (क्योंकि किसी समय तालिबान के साथ उनके गहरे संबंध थे) घटना के बाद कहा था कि भारत आरोप लगाने के बजाय सबूत दे कि इसमें किन्ही पाकिस्तानी तत्वों का हाथ है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की गारंटी देते हैं।
साथ ही यह भी कहा था कि ‘अभी भारत में लोकसभा चुनाव का मौसम है। इसलिए हमें दोषी ठहराया जा रहा है।’ पांच महीने तक खामोश रहने के बाद इमरान खान ने अपनी अमेरिका यात्रा में एक इंटरव्यू में माना कि पुलवामा हमले के पीछे जैश-ए-मुहम्मद ही था। साथ ही उन्होंने इसके साथ यह भी जोड़ दिया कि जैश-ए-मुहम्मद पाकिस्तान में तो मौजूद है ही उसकी मौजूदगी कश्मीर में भी है। उन्होंने यह भी स्वीकार कर लिया कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने बालाकोट पर बमबारी की थी।
अमेरिका की अपनी तीन-दिवसीय यात्रा में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनके देश में 30-40 आतंकी संगठन हैं और 30-40 हजार आतंकवादी मौजूद हैं। पाकिस्तान की पिछली सरकारों पर भी आरोप लगाया कि वे स्थिति पर नियंत्रण रखने में नाकाम रहीं। इमरान ने कहा कि उन सरकारों ने अमेरिका को जमीनी हकीकत नहीं बतायी।
यह टिप्पणी उन्होंने किसी मीडिया इंटरव्यू में नहीं की, बल्कि यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के कार्यक्रम में मौजूद श्रोताओं के समक्ष की। यह संस्था वाशिंगटन स्थित विशेषज्ञों का विचारक मंडल है जिसे वहां ‘थिंक टैंक’ (Think Tank) कहते हैं। शायद इमरान खान श्रोताओं को इस बात का कायल करना चाह रहे थे कि वे एक ‘नया पाकिस्तान’ देख रहे हैं। ‘नया पाकिस्तान’ सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी का नारा भी था।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस कबूलनामे का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी करने वाली संस्था फाइनेंशल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) को यह प्रदर्शित करना था कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ उचित कार्रवाई कर रहा है, इसलिए उसे काली सूची में नहीं डाला जाये, जिसकी संभावना अभी भी बनी हुई है।
फवाद चौधरी व मुशर्रफ के इकबालिया बयान
इस प्रकरण में अब एक विचित्र बात यह हुई है कि पाकिस्तान के बड़बोले विज्ञान व तकनीकी मंत्री फवाद चौधरी ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में ताव में आकर यह उगल दिया कि पुलवामा में आत्मघाती हमला पाकिस्तान ने अंजाम दिया था और साथ ही कहा कि यह पाकिस्तान सरकार की बड़ी कामयाबी थी।
सच्चाई उगल देने का कारण यह था कि पाकिस्तान मुसलिम लीग (नवाज) के सांसद अयाज सादिक ने भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन की तत्काल रिहाई से पहले हुई एक राजनीतिक बैठक का जिक्र करते हुए बताया था कि पाक सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा उस बैठक में आये तो उनकी टांगें कांप रही थीं और वह पसीने से तरबतर थे।
बैठक में विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने गुजारिश की कि अभिनंदन को फौरन रिहा नहीं किया गया तो रात 9 बजे भारत पाकिस्तान पर हमला कर देगा। इसी से आवेश में आकर फवाद चौधरी ने अपनी सरकार के कारनामे का बखान किया और कहा कि ‘हमने हिंदुस्तान को घुसकर मारा है। पुलवामा में हमारी जो कामयाबी है वह इमरान खान की रहनुमाई में पूरी कौम की कामयाबी है।’ अपनी पार्टी का बचाव करने के फेर में पाकिस्तानी मंत्री ने अपनी ही सरकार की नकाब उतार दी।
एक दृष्टिकोण से इसे पाकिस्तान सरकार की कलई खुलना कहा जा सकता है, लेकिन तथ्य तो यह है कि पाकिस्तान सरकार का भेद तो पहले ही खुला हुआ है।
पाकिस्तान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पहले भी आतंकी घटनाओं में अपनी अंतर्लिप्तता कबूल कर चुका है। यहां तक कि पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ ने, जो विदेश में आत्म निर्वासन का जीवन बिता रहे हैं, एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल के पत्रकार नदीम मलिक से फोन पर दिये गये इटरव्यू में हमले में जैश का हाथ होने की बात स्वीकारी थी। मुशर्रफ ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के बारे में बड़ा खुलासा करते हुए कहा था कि उनके कार्यकाल में जैश-ए-मुहम्मद एक आतंकी संगठन था और पाकिस्तान की खुुफिया एजेंसी इसका इस्तेमाल भारत में बम धमाके कराने के लिए करती थी।
मुशर्रफ ने कहा कि उन्होंने दिसंबर 2003 में जैश-ए-मुहम्मद पर दो बार लगाम लगाने की कोशिश की थी। कोशिश की थी यानी कोशिश परवान नहीं चढ़ी, तो ऐसा क्यों हुआ, उन्हें यह भी बताना चाहिए था। दरअसल दिसंबर 2003 में यानी जनवरी 2004 के पहले सप्ताह इसलामाबाद में भारत समेत सात ‘सार्क’ देशों के शासनाध्यक्षों के होने वाले शिखर सम्मेलन को पलीता लगाने के उद्देश्य से पाकिस्तानी फौज के जिहादी तत्वों और आतंकी गुटों ने मुशर्रफ के काफिले पर दो बार जानलेवा हमला किया था, जिसमें वह बाल-बाल बच गये थे। इसमें जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा सहित कई प्रतिबंधित उग्रवादी संगठनों द्वारा गठित एक नये उग्रवादी संगठन का हाथ होने का शक व्यक्त किया गया था।
पाक जांच एजेंसी अफसर ने कहा- सच्चाई कबूले पाकिस्तान
जिहादी तत्व अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा आतंकवाद अथवा तालिबान के विरुद्ध कार्रवाई में पाकिस्तानी फौज के सहयोग के कारण पाकिस्तान सरकार और फौज से बेहद नाराज ही नहीं गुस्से में थे। मुशर्रफ ने अपने शासनकाल में कहा था कि जिहाद आतंकवाद नहीं है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि जिहाद किसको कहते है।
मुशर्रफ के ‘इकबालिया बयान’ से पहले पाकिस्तान के एक पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने भी वर्ष 2009 में अपने कार्यकाल में स्वीकार किया था कि पाकिस्तान सरकार ने प्रारंभ से ही अपने तात्कालिक लाभों के लिए आतंकवादियों को जन्म देकर पाला-पोसा था। यह बयान हमारे देश के अधिकांश लोगों के इस विचार की पुष्टि करता था कि पाकिस्तानी हुकूमत और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ही आतंकवाद की जन्मदाता रही है। पाकिस्तान में विरोधी दलों द्वारा इस पर आपत्ति करने पर जरदारी अपने बयान से पलट गये थे।
पाकिस्तान की फेडरल जांच एजेंसी एफआईए के एक पूर्व डाइरेक्टर जनरल तारिक खोसा ने एक अखबार में लिखे लेख में इस बात का खुलासा किया था कि मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गयी थी। खोसा ने लिखा- ‘नवंबर 2008 में 10 प्रशिक्षित आतंकी 66 घंटों से भी ज्यादा समय तक भारत की व्यावसायिक राजधानी पर कहर ढाते रहे- इसने दो परमाणु संपन्न पड़ोसियों को आर-पार की लड़ाई के स्तर पर ला दिया।
सबूतों से साफ है कि इसमें पाकिस्तान की गलती थी। ऐसे में पाकिस्तान को कड़वी सच्चाई कबूल कर गलती मान लेनी चाहिए।’ खोसरा ने आगे लिखा- ‘पाकिस्तान को अपनी जमीन पर रची और अंजाम दी गयी मुंबई की तबाही का सामना करना होगा। सुरक्षा तंत्र को सुनिश्चित करना होगा कि हमले के साजिशकर्ताओं को सजा मिले।’
जो बातें खोसा ने कहीं वे भारत और सारी दुनिया कहती आ रही है, लेकिन पाकिस्तानी हुकूमत पर इसका कोई असर नहीं हुआ। भारत द्वारा दिये गये ढेर सारे सबूतों को पाकिस्तान अपर्याप्त बताता आ रहा है। पहले तो पाकिस्तान ने साफ इनकार कर दिया था कि मुंबई हमले में पाकिस्तान का कोई हाथ है, बल्कि उल्टा भारत पर ही आरोप मढ़ दिया कि हमला खुद भारत ने ही कराया है ताकि इसमें पाकिस्तान का नाम लेकर उसे बदनाम किया जा सके।
लेकिन जब सब कुछ उजागर हो गया तब कह दिया कि इसमें ‘नन स्टेट एक्टर्स’ या गैर सरकारी तत्वों का हाथ है। पाकिस्तान सरकार का इस हमले से कोई सरोकार नहीं। भारत द्वारा पुख्ता सबूत देने के बावजूद पाकिस्तान सरकार ने इन सबूतों को नाकाफी बताकर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की, सिवाय कुछ दिखावटी कार्रवाई के।
पाकिस्तानी संसद में पाकिस्तानी मंत्री के कबूलनामे और पाकिस्तान की आतंकी हरकतों के बारे में पहले से प्राप्त ढेर सारे सबूतों के बाद पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने में कौन-सी कसर बाकी रह जाती है? यूएन द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी पाकिस्तान में खुले आम घूम रहे हैं। अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान ने इसलामाबाद के निकट अपने छावनी नगर एबटाबाद में छिपाकर रखा हुआ था।
आतंकियों को पेंशन और भत्ता देने वाली सरकार
पिछले वर्ष यूएन में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के युद्धोन्मादी भाषण का करारा जवाब देते हुए भारतीय मिशन में प्रथम सचिव विदिशा मैत्रा ने अन्य बातों के अतिरिक्त कहा कि ‘जो देश आतंकवादियों को पेंशन देता है उसे यह कहने का कोई अधिकार नहीं कि वह स्वयं आतंकवाद से पीड़ित है और आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहा है।’ आतंकियों को पेंशन देने की बात कोई छिपी बात नहीं है। पहले भी इसकी चर्चा हो चुकी है।
पाकिस्तानी फौज के खाते से तनख्वाह लेने वाले आतंकी फौज की वर्दी में नहीं रह कर सब प्रकार की गतिविधियां करते हैंं। इसके अलावा पाकिस्तान की फौज और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकी संगठनों को फंडिंग करती हैं, जिससे ये संगठन रंगरूटों के घरवालों को नियमित पैसा देते हैं और ‘शहीद’ हो जाने पर पेंशन के रूप मेंं मदद भी करते हैं। इस आरोप पर पाकिस्तान ने जवाब देने के अपने अधिकार (Right to Reply) का कोई उपयोग नहीं किया।
इसी दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने न्यूयार्क में एक कार्यक्रम में कहा कि ‘भारत को पाकिस्तान से नहीं, बल्कि ‘टेररिस्तान’ (Terroristan) से बात करने में समस्या है। पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे से निपटने के लिए एक पूरे आतंकी उद्योग का निर्माण किया है।’
‘आइये आतंकी बनिये, बेरोजगारी दूर करिये’
‘द न्यूज’ ( The News) लाहौर की पूर्व संपादक कैमिला हयात ने अपने एक लेख में लिखा था कि ‘जिया उल हक की तानाशाही देश को काले युग की ओर ले गयी, जहां से पाकिस्तान कभी नहीं निकल पाया।’ उन्होंने आगे लिखा- ‘राजनेताओं और सरकार की विफलता के कारण ही उग्रवादी समूहों के संबद्ध भर्ती एजेंट नौजवानों को अपने काम के लिए लुभाने में कामयाब हो जाते हैं।
पंजाब और अन्य प्रांतों के गांवों मे उग्रवादियों के एजेंट सड़क किनारे बने ढाबे और चाय की दुकानों में बेरोजगारों को बंदूक, ताकत और जिंदगी के मकसद का पाठ पढ़ाते हैं। इसकी परिणति अक्सर मौत में होती है। बहुत-से लोगों के लिए यह हताश-निराश जीवन से बेहतर विकल्प है। वस्तुत: मंदी के दौर में अगर कोई नई भर्तियां कर रहा है तो, वे केवल उग्रवादी गुट ही हैं।’
कुछ वर्ष पूर्व पाकिस्तान के अंगरेजी दैनिक ‘द नेशन’ (The Nation) में एक समाचार छपा था जिसमें बताया गया था कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन ने अपने भर्ती और प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के लिए इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इसलामी द्वारा पेशावर में आयोजित ईद मिलन समारोह में चार पेज के पैंफलेट सार्वजनिक रूप से वितरित किये थे।
इसमें हिजबुल ने अपने ट्रेनिंग प्रोग्राम का तफसील से ब्योरा दे रखा था, जिसके मुताबिक नये भर्ती होने वाले लड़ाकों को 21 दिन की शुरुआती ट्रेनिंग देने के बाद तीन महीने की गुरिल्ला लड़ाई की विशेष ट्रेनिंग दी जायेगी। ट्रेनिंग के दौरान मुजाहिदीन के लड़ाकुओं को भोजन, आवास और चिकित्सा की सुविधा हिजबुल द्वारा उपलब्ध करायी जायेगी जबकि ट्रेनिंग सेंटर तक पहुंचने का खर्चा लड़ाकुओं को खुद करना होगा।
यह समाचार पाकिस्तानी पत्रकार कैमिला हयात द्वारा अपने लेख में बतायी गयी बातों को सीधे और स्पष्ट ढंग से पुष्ट करता है। क्या किसी सभ्य और शांतिप्रिय देश में ऐसा होता है?
रंगरूटों को यह भी बताया जाता है कि वे इसलाम की खिदमत की लड़ाई लड़ रहे हैं। मारे जाने पर वे शहीद कहलायेंगे और सीधे जन्नत जायेंगे जहां हसीन हूरें मिलेंगी और बहुत-सी दूसरी सुख-सुविधाएं भी।
पाकिस्तान में आतंकवाद के फलते-फूलते उद्योग के कारण पाकिस्तान द्वारा लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करवा कर कश्मीर में ढकेले जाने वाले आतंकियों को भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा बड़ी संख्या में मार गिराते रहने के बावजूद आतंकी भेजने की पाकिस्तानी की सप्लाई लाइन टूटती नहीं। पाकिस्तान में आतंकवाद की फसल लहलहा रही है तो इसलिए कि पाकिस्तान सरकार उसको निरंतर खाद-पानी देती रही है।
पाकिस्तान सरकार का ध्यान अपने देश की भयंकर गरीबी और बेरोजगारी दूर करने के बजाय भारत को लहू-लुहान करने की ओर ज्यादा केंद्रित है। जिस कारण वह धीरे-धीरे अपनी बरबादी की ओर बढ़ रहा है।