हाल में सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा 2019-20 के लिए राष्ट्रीय आय का अग्रिम अनुमान (5 प्रतिशत) जारी किया गया. दो तिमाहियों के खराब प्रदर्शन के बाद आये इस अनुमान से स्पष्ट है कि निकट भविष्ट में आर्थिक सुधार की तस्वीर साफ नहीं है. दिसंबर में 7.35 प्रतिशत पर पहुंची खुदरा महंगाई की चुनौती अलग से है. खाद्य पदार्थों के बढ़े दामों का दबाव शहर और गांव दोनों तरफ महसूस किया जा रहा है. आम बजट से पहले आये महंगाई के आंकड़ों, घटती मांग, रोजगार की कमी और विभिन्न समस्याओं से घिरी अर्थव्यवस्था के सुधार पर सरकार का रुख अहम होगा.


महंगाई एक बार फिर डरावने तरीके से दस्तक दे रही है. बीते दिसंबर में खुदरा महंगाई दर रिकॉर्ड 7.35 प्रतिशत पर पहुंच गयी. हालिया राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई दर दिसंबर, 2018 में 2.11 प्रतिशत थी, जो नवंबर, 2019 में 5.54 प्रतिशत पर पहुंच गयी थी.
इससे पहले जुलाई, 2014 में महंगाई दर 7.39 प्रतिशत पर पहुंची थी. दिसंबर, 2018 के मुकाबले बीते महीने सब्जियों की कीमतों में 60.5 प्रतिशत की महंगाई दर्ज की गयी. प्याज की पैदावार में 26 प्रतिशत की गिरावट की वजह से देश के कई प्रमुख शहरों में प्याज की कीमतें 100 रुपये से अधिक हो गयी थीं.
कुल मिलाकर दिसंबर महीने में खाद्य महंगाई बढ़कर 14.12 प्रतिशत रही, जो बीते वर्ष इसी अवधि में -2.65 प्रतिशत दर्ज की गयी थी. नवंबर, 2019 में यह आंकड़ा 10.01 प्रतिशत पर था, जिसमें तेजी से उछाल आया है. सब्जियों के अलावा दालों, मीट, मछली की कीमतों में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है. दालों में जहां 15.44 प्रतिशत, वहीं मीट और मछली की कीमतों में लगभग 10 प्रतिशत की तेजी आयी है.
आरबीआइ के लिए सिरदर्द बनेगी महंगाई!
नवंबर, 2019 के मुकाबले दिसंबर, 2019 में 1.81 प्रतिशत की वृद्धि के साथ महंगाई दर 7.35 प्रतिशत पर पहुंच गयी. केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित महंगाई की 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा पार करने से विभिन्न स्तरों पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है. अगर खाद्य कीमतें नियंत्रित नहीं होती हैं, तो यह समस्या और बड़ी हो सकती है. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक को इस बात की आशंका थी, इसलिए ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया गया था.
आरबीआइ द्वारा जारी बयान में 2019-20 की दूसरी छमाही में महंगाई दर 4.7 से 5.1 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान था, लेकिन यह भी कहा गया था कि खाद्य कीमतों में राहत होने से यह खुदरा महंगाई 2020-21 की पहली छमाही में आरामदेह स्थिति यानी 3.8 से 4 प्रतिशत के बीच आ सकती है.
साल 2016 में आगामी पांच वर्ष के लिए सरकार द्वारा तय की गयी महंगाई की 2 से 6 प्रतिशत की प्रतिबद्धता सीमा पार होने से अब आरबीआइ के लिए चिंताजनक स्थिति है. महंगाई की चिंता के मद्देनजर दिसंबर की पॉलिसी में आरबीआइ ने रेपो दरों में बदलाव नहीं किया था, लेकिन आगामी 6 फरवरी की मासिक मौद्रिक नीति की घोषणा में आरबीआइ का क्या रुख होता है, यह देखना अहम होगा.
आरबीआइ का उदारवादी रवैया
महंगाई के छह साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचने से आरबीआइ द्वारा ब्याज दरों में आगे कटौती की संभावना कम है. अपनी पिछली नीतिगत समीक्षा में आरबीआइ ने उदारवादी रुख अपनाया था. हालांकि, बढ़ी ब्याज दरें न तो अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए और न ही मांग की कमी से जूझते बाजार के लिए अच्छी हैं, विशेषकर ऐसे वक्त में जब चार दशक में बेरोजगारी दर अधिकतम हो.
आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास कह चुके हैं कि सरकार के पास ही अब विकल्प बचे हैं. उन्होंने यह स्वीकार किया कि महंगाई का मुद्दा मौद्रिक नीति समिति के आगे के निर्णयों को प्रभावित करेगा. आम बजट के पांच दिन बाद ही आरबीआइ अपनी नीतिगत समीक्षा करेगा, ऐसे में तैयार की गयी राजकोषीय योजनाओं पर महंगाई का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है.