बढ़ती महंगाई के मद्देनजर आरबीआइ ने यह फैसला लिया है. इस कदम को आर्थिक दृष्टि से सकारात्मक समझा जा रहा है. इसका मकसद बढ़ती मुद्रास्फीति को काबू में रखते हुए आर्थिक वृद्धि को गति देना है. खुदरा मुद्रास्फीति पिछले तीन महीने से रिजर्व बैंक के लक्ष्य की उच्चतम सीमा छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है.

महंगाई को काबू में लाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने बुधवार को अचानक प्रमुख नीतिगत दर 'रेपो' में 0.4% की वृद्धि की घोषणा की. आरबीआइ के इस कदम से अब कंपनियों और आम लोगों के लिए कर्ज लेना महंगा होगा. आवास, वाहन व अन्य कर्ज से जुड़ी मासिक किस्त (इएमआइ) भी बढ़ेगी. इस वृद्धि के साथ रेपो दर रिकॉर्ड निचले स्तर 4 से बढ़ कर 4.40% हो गयी है.

अगस्त, 2018 के बाद यह पहला मौका है, जब नीतिगत दर बढ़ायी गयी है. साथ ही यह पहला मामला है, जब आरबीआइ के गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति ने प्रमुख ब्याज दर बढ़ाने को लेकर बिना तय कार्यक्रम के बैठक की है. रेपो वह दर है जिस पर बैंक तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आरबीआइ से कर्ज लेते हैं. आरबीआइ ने सीआरआर को 0.50% बढ़ा कर 4.5% करने का भी निर्णय किया. इस फैसले से बैंकों को अतिरिक्त राशि आरबीआइ के पास रखनी पड़ेगी. यह वृद्धि 21 मई से प्रभाव में आयेगी.
 

क्या है रेपो रेट एवं इएमआइ में कनेक्शन

जब रिजर्व बैंक रेपो रेट कम करता है, तो बैंक भी अमूमन ब्याज दरों को कम करते हैं. यानी बैंकों द्वारा ग्राहकों को दिये जाने वाले ऋण की ब्याज दरें कम होती हैं, जिससे इएमआइ भी घटती है. इसी तरह जब रेपो रेट में इजाफा होता है, तो बैंकों को आरबीआइ से ऊंची कीमतों पर पैसा मिलता है. इसलिए बैंकों को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं. ऐसे में कर्ज महंगा हो जाता है.